पहलगाम का आतंकवादी हमला, इन्होंने किया था हमला,

पहलगाम का आतंकवादी हमला: आम नागरिकों की जान की कीमत कौन तय करेगा?

जय हिंद दोस्तों,

भारत के मिनी स्विट्जरलैंड कहे जाने वाले पहलगाम की बेसारन वैली, जो हमेशा से अपनी खूबसूरती और शांति के लिए प्रसिद्ध थी, आज आंसुओं और मातम में डूबी हुई है। हाल ही में इस शांत वादियों में एक दिल दहला देने वाला आतंकी हमला हुआ है, जिसने पूरे देश को झकझोर कर रख दिया।

अब तक की जानकारी के अनुसार, इस हमले में 26 निर्दोष लोगों की जान चली गई और 17 लोग घायल हुए हैं। मृतकों में सभी पुरुष थे। यह इलाका हाई-ऑल्टीट्यूड पर स्थित है, जहां सिर्फ पैदल या खच्चर के जरिए पहुँचा जा सकता है, इसलिए राहत और बचाव कार्य में हेलीकॉप्टर और स्थानीय घोड़े वालों की मदद ली गई।

हमले की भयावहता

स्थानीय मुस्लिम सैयद आदिल हुसैन शाह, जो खच्चर चलाते थे, इस हमले का शिकार हुए। उनके अलावा एक क्रिश्चियन नागरिक भी मारे गए। बाकी 24 लोग हिंदू श्रद्धालु और सैलानी थे, जो अलग-अलग राज्यों से आए थे। उदाहरण के लिए, जयपुर के 32 वर्षीय नीरज उधवानी, जो यूएई से छुट्टियों में लौटे थे, अपनी पत्नी के साथ यहाँ आए थे। नेपाल से सुदीप न्यौपड़े भी शिकार बने।

भारतीय सेना और इंटेलिजेंस ऑफिसर भी इस हमले के शिकार हुए — इंडियन एयरफोर्स के कॉर्पोरल तागे हेलियांग, आईबी के सेक्शन ऑफिसर मनीष रंजन, और नेवी के लेफ्टिनेंट विनय नारवाल, जिनकी शादी को मात्र छह दिन हुए थे। उनकी पत्नी ने दहाड़ मारते हुए कहा कि उनका पति डेढ़ घंटे तक जिंदा था, लेकिन कोई मदद नहीं पहुँची।

इंसानियत पर हमला

इस हमले की सबसे दर्दनाक बात यह रही कि आतंकवादियों ने धर्म के आधार पर लोगों को चुन-चुनकर गोली मारी। एक चश्मदीद ने बताया कि आतंकी टेंट में घुसे और लोगों से इस्लामिक वर्सेस सुनाने को कहा। जो नहीं कर पाए, उन्हें गोली मार दी गई।

घायल असावरी ने बताया कि कैसे खच्चर वाले और स्थानीय लोग, जान की बाजी लगाकर, घायल लोगों को हॉस्पिटल ले गए। 20 मिनट बाद सेना पहुँची, तब तक कई जिंदगियां खत्म हो चुकी थीं।

जिम्मेदार कौन?

इस हमले की जिम्मेदारी ‘द रेजिस्टेंस फ्रंट’ (TRF) ने ली है, जो लश्कर-ए-तैयबा से जुड़ा एक आतंकी संगठन है। पुलिस ने तीन पाकिस्तानी आतंकियों के स्केच भी जारी कर दिए हैं। सरकारी सूत्रों के अनुसार, कुछ स्थानीय युवा जो पाकिस्तान चले गए थे, वे भी इसमें शामिल हो सकते हैं।

पर सवाल उठता है कि अगर इनपुट्स पहले से थे तो हमला क्यों नहीं रोका गया?

जैसे पुलवामा हमले से पहले भी ग्यारह बार अलर्ट दिए गए थे लेकिन फिर भी सैकड़ों जवान एक साथ भेजे गए और हमला हो गया था। इतिहास दोहराया गया है।

सरकार और मीडिया की भूमिका

आज जब आम नागरिकों की जान गई है, तो मीडिया सवाल उठाने के बजाय या तो चुप है या दोष अदालतों पर डाल रहा है।  

गोदी मीडिया के कुछ एंकर, जैसे अर्नब गोस्वामी, इस त्रासदी के लिए सुप्रीम कोर्ट को जिम्मेदार ठहरा रहे हैं, जबकि सुरक्षा की जिम्मेदारी चुनी हुई सरकार की होती है।

सवाल यह भी है कि इतनी बड़ी संख्या में पर्यटक होने के बावजूद सुरक्षा इंतजाम क्यों नहीं थे? क्यों पहले से अलर्ट के बावजूद स्थानीय पुलिस या सेना की तैनाती नहीं हुई?

फौज और पुलिस में कमी

आज भारत में सेना में 1 लाख से ज्यादा जवानों की कमी है। 8400 ऑफिसर पोस्ट खाली हैं। कोविड काल में भर्तियाँ नहीं हुईं और अब ट्रूप स्ट्रेंथ घटाने का प्लान चल रहा है ताकि सैलरी और पेंशन का खर्च बचाया जा सके।इसका परिणाम क्या है? जब आप और हम संकट में होंगे, तब मदद के लिए कोई नहीं आएगा।  जैसे विनय नारवाल डेढ़ घंटे तक जिंदा रहे लेकिन कोई सैनिक नहीं आया।

आम नागरिक बनाम वीआईपी सुरक्षा

जब आम नागरिक मारे जाते हैं तो कोई फर्क नहीं पड़ता, लेकिन मुकेश अंबानी और बॉलीवुड सितारों के लिए Z+ सुरक्षा उपलब्ध रहती है — जिसमें 55 सरकारी सुरक्षाकर्मी लगे रहते हैं, जिनकी ट्रेनिंग पर हमारा टैक्स खर्च होता है।

सवाल यह है — क्या आम नागरिकों की जान इतनी सस्ती है?

भारत की आत्मा को जगाना होगा

पहले जब देश पर आतंकी हमले होते थे, तो सरकारें जवाबदेही लेती थीं। 26/11 के बाद होम मिनिस्टर और मुख्यमंत्री ने इस्तीफा दिया था। लेकिन आज जब आतंकवादी हमले होते हैं, तो सवाल पूछने वालों को देशद्रोही कहा जाता है।

आज जरूरत है एकजुट होकर फिर से वह सवाल पूछने की ताकत पैदा करने की।  

  • क्यों सुरक्षा चूक हुई?  
  • क्यों इंटेलिजेंस इनपुट्स के बावजूद आतंकी हमला हुआ?  
  • क्यों आम नागरिकों की जान को प्राथमिकता नहीं दी जाती?  
  • क्यों सेना और पुलिस में भर्ती नहीं हो रही है?  
  • क्यों सरकार मीडिया के जरिए ध्यान भटकाती है, जवाबदेही से बचती है?

निष्कर्ष

दोस्तों, पहलगाम की घाटी में बिछे इन निर्दोषों के शव हमसे सिर्फ मातम नहीं माँगते, बल्कि जवाबदेही भी माँगते हैं। अगर आज हम चुप रहे, तो कल और भी मासूम जानें जाएंगी और हम सिर्फ मोमबत्ती मार्च तक सीमित रह जाएंगे।

यह समय है कि हम मिलकर सवाल पूछें और ऐसा भारत बनाएं जहां कोई बच्चा, कोई महिला, कोई टूरिस्ट, कोई सैनिक डर के साए में न जिए।

जैसे एक मां अपने बच्चे को पूरी सुरक्षा देना चाहती है, वैसे ही एक सरकार का फर्ज है अपने नागरिकों को सुरक्षित रखना।

याद रखिए: आतंकवाद से लड़ने के लिए सबसे पहला कदम सवाल पूछना होता है।

चुप्पी आतंकवाद की सबसे बड़ी ताकत है।  

तो उठिए, बोलिए और देश की आत्मा को फिर से जगाइए।

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